दुनिया तेजी से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ रही है और सोलर पैनल इसका सबसे बड़ा हिस्सा बन चुके हैं। लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि भविष्य में धरती पर लगे सोलर पैनल बेकार साबित हो सकते हैं? हाल ही में लंदन की किंग्स कॉलेज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि अंतरिक्ष से सोलर पावर (Space-Based Solar Power – SBSP) भविष्य में ऊर्जा संकट का स्थायी हल बन सकती है। इस तकनीक से 2050 तक यूरोप की 80% तक नवीकरणीय ऊर्जा की जरूरत पूरी हो सकती है।

धरती पर सोलर पैनल की सीमाएँ
धरती पर सोलर पैनल से बिजली बनाना आसान और सस्ता होता जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की ‘Renewables 2024’ रिपोर्ट बताती है कि 2024 से 2030 के बीच नवीकरणीय ऊर्जा की वैश्विक वृद्धि का 80% हिस्सा सिर्फ सोलर से आएगा। लेकिन इसमें कई कमियां भी हैं। सोलर पैनल सिर्फ दिन में ही बिजली बना सकते हैं, मौसम पर निर्भर रहते हैं और ज्यादा जगह घेरते हैं। यही वजह है कि वैज्ञानिक अब धरती से बाहर नजरें गड़ा रहे हैं।
अंतरिक्ष से आएगा लगातार पावर सप्लाई
किंग्स कॉलेज के शोध के अनुसार, अगर सैटेलाइट्स को जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में लगाया जाए तो वे लगातार सूरज की रोशनी लेकर धरती पर माइक्रोवेव के जरिए बिजली भेज सकते हैं। यह बिजली ‘डिस्पैचेबल और जीरो-कार्बन’ होगी, यानी मौसम और दिन-रात से बिल्कुल प्रभावित नहीं होगी। शोध में नासा की दो कॉन्सेप्ट डिज़ाइनों का सिमुलेशन किया गया—एक हेलियोस्टैट स्वॉर्म डिज़ाइन और दूसरा प्लानर एरे डिज़ाइन। इनमें बड़े दर्पण जैसे रिफ्लेक्टर्स सूरज की रोशनी को इकट्ठा कर धरती पर ट्रांसमिट करेंगे, जहां इसे बिजली में बदला जाएगा।
इस तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह है कि अंतरिक्ष में सोलर पैनल हमेशा सूरज की ओर रहेंगे और बिजली उत्पादन लगभग लगातार होगा। साथ ही, स्पेस में सोलर रेडिएशन भी धरती की तुलना में ज्यादा होता है, जिससे ऊर्जा उत्पादन अधिक होगा।
चुनौती: लागत और विशाल इंफ्रास्ट्रक्चर
हालांकि यह विचार बेहद आकर्षक है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी चुनौती लागत और विशाल ढांचा तैयार करना है। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के अनुसार, एक अकेला सोलर पावर सैटेलाइट 1 किलोमीटर से बड़ा हो सकता है और उसकी ग्राउंड स्टेशन को उससे भी दस गुना बड़ी जगह चाहिए। इतना ही नहीं, एक स्टेशन को बनाने के लिए सैकड़ों रॉकेट लॉन्च करने पड़ेंगे। तुलना करें तो अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) को बनाने में ही 40 से ज्यादा असेंबली फ्लाइट लगी थीं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि इतनी बड़ी लागत के कारण SBSP 2050 से पहले व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। इसके अलावा अंतरिक्ष की भी चुनौतियां हैं—ऑर्बिटल भीड़, ट्रांसमिशन में रुकावटें और बीमिंग की स्थिरता।
फिर भी, वैज्ञानिक मानते हैं कि अगर तकनीक और सस्ता स्पेस लॉन्च संभव हुआ तो SBSP मानव सभ्यता के लिए ऊर्जा का असीम स्रोत बन सकता है। यह वही भविष्य हो सकता है जहां बिजली की कमी का नामोनिशान तक नहीं होगा।
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