दुनिया भर में ऊर्जा संकट और बढ़ते प्रदूषण के बीच सोलर एनर्जी ही सबसे बड़ा सहारा बनती जा रही है। इसी बीच जर्मनी के Fraunhofer Institute for Solar Energy Systems (Fraunhofer ISE) और सऊदी अरब की King Abdullah University of Science and Technology (KAUST) ने मिलकर एक ऐसा सोलर सेल बनाया है, जिसकी एफिशिएंसी ने नया रिकॉर्ड कायम कर दिया है। इस नए परोव्स्काइट-सिलिकॉन टैंडम सोलर सेल ने 33.1% पावर कन्वर्जन एफिशिएंसी हासिल की है।

क्या है इस नए सोलर सेल की खासियत?
यह नया सेल पूरी तरह फुली-टेक्स्चराइज्ड सिलिकॉन पर बनाया गया है, जो आमतौर पर परोव्स्काइट लेयर के लिए चुनौतीपूर्ण माना जाता है। शोधकर्ताओं ने एक टू-स्टेप डिपॉजिशन मेथड अपनाया, जिसमें परोव्स्काइट की सतह पर खास तरह का पासिवेशन लेयर लगाया गया। यह लेयर 1,3-diaminopropane dihydroiodide से तैयार की गई, जिससे सेल की परफॉर्मेंस और भी बेहतर हुई।
इस तकनीक से सतह की असमानता को बैलेंस किया गया और परोव्स्काइट-सिलिकॉन का कॉम्बिनेशन पहले से कहीं ज्यादा स्थिर और एफिशिएंट साबित हुआ। रिसर्च टीम के लीडर Oussama Er-Raji के मुताबिक, “अब हम टेक्स्चराइज्ड सतह पर भी उत्कृष्ट पासिवेशन हासिल कर पाए हैं, जो पहले केवल फ्लैट सतह पर ही संभव था।
2.01V ओपन-सर्किट वोल्टेज और जबरदस्त आउटडोर परफॉर्मेंस
टेस्टिंग के दौरान इस टैंडम सोलर सेल ने 2.01 वोल्ट का ओपन-सर्किट वोल्टेज हासिल किया। यही नहीं, इसे सऊदी अरब के रेड सी कोस्ट पर आउटडोर कंडीशन में भी टेस्ट किया गया, जहां इसने लंबे समय तक स्थिर परफॉर्मेंस दिखाई। यह साबित करता है कि यह सेल सिर्फ लैब में नहीं बल्कि असली मौसम की परिस्थितियों में भी टिकाऊ है।
Fraunhofer ISE के प्रोफेसर Stefan Glunz ने कहा, “सतह पासिवेशन केवल एक ऑप्शन नहीं है, बल्कि एफिशिएंसी और स्टेबिलिटी बढ़ाने के लिए जरूरी है। जिस तरह सिलिकॉन सोलर सेल्स में पासिवेशन ने इंडस्ट्री को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, उसी तरह अब यह तकनीक परोव्स्काइट-सिलिकॉन टैंडम सेल्स के लिए भी क्रांतिकारी साबित होगी।”
सोलर इंडस्ट्री के लिए कितना बड़ा गेमचेंजर?
पिछले कुछ वर्षों में परोव्स्काइट और सिलिकॉन का कॉम्बिनेशन सोलर रिसर्च का सबसे हॉट टॉपिक बना हुआ है। जहां सिलिकॉन की मजबूती और परोव्स्काइट की हाई लाइट-अब्जॉर्प्शन कैपेसिटी मिलकर नई उम्मीदें जगाती हैं। अब 33.1% एफिशिएंसी का आंकड़ा इस तकनीक की पोटेंशियल को और पुख्ता करता है।
यह इनोवेशन आने वाले समय में छतों पर लगे सोलर पैनल से लेकर बड़े पैमाने की सोलर फार्म्स तक, हर जगह बिजली उत्पादन में क्रांति ला सकता है। खासकर उन देशों में जहां सूरज की रोशनी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, वहां इस टेक्नोलॉजी से ऊर्जा की लागत काफी कम हो सकती है।
संक्षेप में कहा जाए तो KAUST और Fraunhofer ISE की यह उपलब्धि न केवल एक वैज्ञानिक सफलता है, बल्कि ग्रीन एनर्जी की दिशा में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है। आने वाले कुछ सालों में इस तरह के सोलर सेल्स से न केवल घरों और इंडस्ट्री को पावर मिलेगी, बल्कि नेट-जीरो कार्बन फ्यूचर की ओर दुनिया का कदम और तेज़ हो जाएगा।
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