भारत की सोलर इंडस्ट्री इस समय एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां चुनौतियों के बावजूद तेज़ रफ्तार से आगे बढ़ रही है। अमेरिका द्वारा लगाए गए भारी टैक्स का असर निश्चित रूप से भारतीय सोलर मैन्युफैक्चरर्स पर पड़ा है, लेकिन घरेलू मांग और सरकार की नीतिगत मदद ने इस झटके को संभाल लिया है। चीन जैसी वैश्विक ताकत से मुकाबले की तैयारी कर रहा भारत अब न सिर्फ घरेलू स्तर पर, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी मौजूदगी मज़बूत करने की ओर बढ़ रहा है।

घरेलू मांग बनी इंडस्ट्री की सबसे बड़ी ताकत
जयपुर के पास स्थित एक इंडस्ट्रियल ज़ोन में ReNew का सोलर मॉड्यूल प्लांट इसका बेहतरीन उदाहरण है। करीब 1000 लोगों को रोजगार देने वाला यह प्लांट हर साल 4 गीगावॉट क्षमता के मॉड्यूल बनाता है, जो लगभग 25 लाख भारतीय घरों को रोशन करने के लिए पर्याप्त है। यहां काम कर रहीं इंजीनियर मोनिषा बताती हैं कि यह नौकरी न सिर्फ उन्हें आर्थिक रूप से सक्षम बना रही है, बल्कि देश की क्लीन एनर्जी ट्रांज़िशन में भी योगदान दे रही है।
भारत में पिछले वित्तीय वर्ष में सोलर कंपोनेंट्स की उत्पादन क्षमता दोगुनी और सोलर सेल मैन्युफैक्चरिंग तीन गुना हो गई। यह दर्शाता है कि घरेलू मांग अब इतनी तेज़ी से बढ़ रही है कि भारतीय कंपनियां अमेरिकी टैक्स जैसे झटकों से उबरने में सक्षम हो रही हैं। पहले जहां भारतीय निर्माता अपने लगभग एक-तिहाई पैनल अमेरिका को निर्यात करते थे, वहीं अब घरेलू बाजार ही पर्याप्त अवसर उपलब्ध करवा रहा है।
सरकारी नीतियां और सस्ती सौर ऊर्जा दे रही हैं बढ़ावा
भारत उन देशों में से है जो कार्बन उत्सर्जन में सबसे ऊपर हैं, लेकिन अब स्थिति बदल रही है। नई कोयला आधारित बिजली परियोजनाओं की तुलना में सौर ऊर्जा की लागत आधी हो चुकी है। यही कारण है कि पिछले 10 सालों में भारत की इंस्टॉल्ड सोलर क्षमता 30 गुना बढ़ गई।
सरकार ने सोलर मैन्युफैक्चरर्स को टैक्स ब्रेक, सब्सिडी और “डोमेस्टिक प्रोक्योरमेंट” जैसे नियमों से बड़ा सहारा दिया है। साथ ही 2030 तक 500 गीगावॉट क्लीन एनर्जी के महत्वाकांक्षी लक्ष्य ने कंपनियों को और तेजी से उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है। इस समय भारत में लगभग 170 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं पाइपलाइन में हैं, जिनमें ज्यादातर सोलर प्रोजेक्ट्स हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सही समय है जब भारतीय कंपनियां घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में अपनी मजबूत पकड़ बना सकती हैं। ऊर्जा विश्लेषक चारिथ कोंडा कहते हैं कि भारत की सौर इंडस्ट्री उतनी एक्सपोर्ट-डिपेंडेंट नहीं है जितना अन्य देश हैं। इसका मतलब है कि अगर अमेरिका जैसे देशों में बाधाएं आती भी हैं तो घरेलू बाजार ही उन्हें संभाल सकता है।
चुनौतियां अब भी बरकरार, लेकिन भविष्य उज्ज्वल
हालांकि, भारत को अभी भी चीनी कच्चे माल पर निर्भर रहना पड़ता है। ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक, साल 2025 की पहली तिमाही में भारत ने चीन से 1.3 अरब डॉलर के सोलर सेल्स और मॉड्यूल इंपोर्ट किए, हालांकि यह पिछले साल की तुलना में एक-तिहाई कम है। इसका मतलब है कि धीरे-धीरे भारत इस निर्भरता को कम करने की ओर बढ़ रहा है।
क्लाइमेट एनर्जी थिंक टैंक Ember के एनालिस्ट ने भविष्यवाणी की है कि 2030 तक भारत को सिर्फ कच्चा “पॉलीसिलिकॉन” इंपोर्ट करना पड़ेगा, जबकि बाकी सोलर पैनल कंपोनेंट्स देश के भीतर ही बनेंगे। इसके लिए जरूरी खनन और प्रोसेसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर पर सरकार पहले से काम कर रही है।
नेशनल सोलर एनर्जी फेडरेशन ऑफ इंडिया के शुभांग पारेख का मानना है कि आने वाले कुछ साल बेहद अहम होंगे। अगर भारत अपनी सप्लाई चेन को मजबूत करने में सफल रहता है, तो यह सोलर मैन्युफैक्चरिंग में चीन जैसी ताकत को भी चुनौती दे सकेगा।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अमेरिका के टैक्स और चीन पर निर्भरता जैसी चुनौतियां बनी हुई हैं, लेकिन घरेलू मांग, सरकारी नीतियों और तकनीकी प्रगति की वजह से भारत की सोलर इंडस्ट्री आने वाले वर्षों में और ज्यादा मजबूती से उभरेगी।
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