आजकल सोलर एनर्जी का ज़माना है और एक नई क्रांति है। वर्टिकल सोलर पैनल जमीन पर फ्लैट लगने वाले पारंपरिक पैनल से बिलकुल अलग होते हैं और खड़े होकर दोनों तरफ से रोशनी सोखते हैं। इन बाइफेशियल पैनल्स का डिज़ाइन ऐसी दिशा में किया जाता है कि सुबह और शाम की धूप भी उपयोगी बन जाती है और परावर्तित रोशनी से भी ऊर्जा उत्पन्न होती है। वर्टिकल ऐरे फसलों के बीच पंक्तियों में लगाए जाते हैं और उनके दोनों तरफ फसल उगाने की जगह रहती है, इसलिए भूमि का दोगुना उपयोग संभव होता है।

किसानों के लिए फायदे और आर्थिक संभावनाएं
वर्टिकल सिस्टम खेती और ऊर्जा उत्पादन को जोड़कर किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद कर सकता है। 2025 में Ashika Energy Systems ने Next2Sun Germany और Wattkraft India के साथ मिलकर इस टेक्नोलॉजी को भारत में लाने के लिए डील साइन की, जिसे Re-Invest 2025 में रेखांकित किया गया। इस तकनीक से किसान ना केवल अपने फार्मिंग खर्च घटा सकते हैं बल्कि अतिरिक्त बिजली को बैटरी में स्टोर कर रात में उपयोग कर सकते हैं या ग्रिड में बेचकर अतिरिक्त आमदनी भी कमाई जा सकती है।
किसानों को जमीन की बचत मिलती है क्योंकि पारंपरिक फ्लैट पैनल के मुकाबले जमीन का अधिक हिस्सा खेती के लिए उपलब्ध रहता है। दोनों तरफ रोशनी लेने वाली पैनल्स की वजह से कुल उत्पादन भी बढ़ता है और सुबह-शाम की धूप से भी लाभ मिलता है। मॉडर्न इन्वर्टर और स्मार्ट मीटर के जरिये ऊर्जा का सही हिसाब रखा जा सकता है और नेट-metering से किसान अपनी अतिरिक्त बिजली की कमाई सुनिश्चित कर सकते हैं।
चुनौतियाँ, सब्सिडी और आगे का रास्ता
वर्टिकल सोलर के साथ जमीन के लेआउट, सिंचाई उपकरणों की ऊँचाई और स्थानीय ग्रिड कनेक्टिविटी को ध्यान में रखना होगा ताकि खेती प्रभावित न हो। मानसून में एफिशिएंसी घट सकती है पर बैटरी और स्मार्ट इन्वर्टर से सपोर्ट मिलता है। एक औसत 3 किलोवाट वर्टिकल सोलर सिस्टम की लागत लगभग 1.35 लाख से 1.50 लाख रुपये रहती है, पर सब्सिडी और पैकेजिंग से यह किसानों के लिए व्यवहार्य बन जाता है और निवेश आम तौर पर तीन से चार वर्षों में वसूल हो जाता है। भारत का लक्ष्य 2030 तक सौर क्षमता बढ़ाना है और वर्टिकल सोलर छोटे किसान तथा बड़े फार्म दोनों के लिए एक व्यवहारिक विकल्प बन सकता है।
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